Followers

Tuesday, May 22, 2012

नज़म - अना के नताइज

अना के चलते मैं तो हमेशा ही ऊंची ऊंची हवाओं में उड़ा करता था,
मेरे घर में एक कमरे के अंदर कोने में एक आइना हुआ करता था,
आइना कभी भी झूठ नहीं बोलता, वोह तो हमेशा सच ही बोलता है -
लिहाज़ा वोह हमेशा मुझको मेरी असली सूरत दिखा दिया करता था।

मैं तो आइने की इस बेजा हरकत पर हमेशा नाराज़ रहा करता था,
पर आइना हमेशा ही मेरी खफ़्गी को नज़रंदाज़ कर दिया करता था,
एक दिन बेइंतेहा गुस्से में आकर मैंने उस आइने को तोड़ ही डाला -
पर टूटे आइने का हर टुकड़ा मुझे हकीकत-ए-हाज़िरा दिखा रहा था।

अना के रहते मेरी सोच में तल्खियों का शुमार भी हुआ करता था,
आज उसी सोच को आइने का हर टुकड़ा हकीकत बयान करता था,
भरम मेरी अना की बेबाकियों का कुछ यूं टूटा आइने के टूटने पर -
कि वजूद मेरी अना का टुकड़े टुकड़े हो मिट्टी में मिला करता था।

No comments: