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Wednesday, May 25, 2011

नज़म - इश्क-औ-मोहब्बत

ज़िंदगी में सच्चाई की राह पर चलके ही मंज़िलों को हमने पाया है,
ज़िंदगी में टेहड़े मेहड़े रास्तों पर भी आसान सफ़र हमने सुझाया है।

इस शिद्दत से तुमको चाहा है, अपने सिर आंखों पर हमने बिठाया है,
अपना खुदा तुमको माना है, प्रस्तिश के लिए शीश हमने झुकाया है।

पत्थर के मानिंद सख्त सही लेकिन हममें दरिया जैसी रवानी भी है,
हमारे साथ चलकर तो देखो, चट्टानों में भी रास्ता हमने बनाया है।

तन्हाइयां नाखुश रही हैं हमेशा और कोसों दूर हमसे भागती रही हैं,
इस कदर खुश मिजाज़ हैं हम, जंगल में भी मंगल हमने सजाया है।

ज़मीं-औ-आसमां, चांद-औ-तारे, सब का बस हमसे एक ही पैग़ाम है,
कायम रहे इश्क मोहब्बत, इश्क मोहब्बत को खुदा हमने मनाया है।

नज़म - आप-औ-हम

हमारी ज़िंदगी के हासिल में जब कभी भी आते हो आप,
हमारे लिए बहारों और जन्नत के पैग़ाम ही लाते हो आप।

आपकी चूड़ियों की खनक से तो बाखुदा हम खूब वाकिफ़ हैं,
चूड़ियों अपनी को छनका के हमें सराबोर कर जाते हो आप।

आपके प्रेम भरे गीतों की रसीली तान तो हमें मधुर लगती है,
अपने प्यारे गीतों से हमारे कानों में रस घोल जाते हो आप।

तपती दोपहर में सूर्य की गर्म धूप से जब हम छटपटा उठते हैं,
तो अपनी परेशां ज़ुल्फ़ों की नर्म छांव हमपर डाल जाते हो आप।

आप ही बताओ आपकी आंखों से छलके नशे से कैसे बचें हम,
अपनी नशीली आंखों से नशा तो बारहा छलकाए जाते हो आप।

नज़म - तड़प

भूख और प्यास की तड़प जैसे तुम्हें होती है, वैसे ही औरों को होती है,
हालात की मुश्किल दुखद जैसे तुम्हें होती है, वैसे ही औरों को होती है।

बहुत आसां होता है किसी पर तानाज़न होना, किसी पर तज़करा करना, 
गैरों की खुशहाली से हसद जैसे तुम्हें होती है, वैसे ही औरों को होती है।

अपनी बढ़तरी स्थापित करने को औरों को एहसास-ए-कमतरी मत दो,
आल्लाह-ज़र्फ़ी की ललक जैसे तुम्हें होती है, वैसे ही औरों को होती है।

लड़ना हकूक के लिए जायज़ है मग़र जम्हूरियत में यह फ़रमान भी है,
हासिल-ए-हक की तलब जैसे तुम्हें होती है, वैसे ही औरों को होती है।

हिंदु, मुस्लिम, सिख या ईसाई, किसी भी दीन से हो, क्या फ़र्क पढ़ता है,
भगवान को पाने की तड़प जैसे तुम्हें होती है, वैसे ही औरों को होती है।

नज़म - माशरा

शेर तो बहुत कहते हो, जोड़कर उनको खूबसूरत नज़म इक बना,
छोटे छोटे तिनकों को चुन और उनसे खूबसूरत घोंसला इक बना।

बहुत आसान होता है ईंट-औ-पत्थर को जोड़ मकान एक बना देना,
मकान को रहने लायक बना के आबाद कर खूबसूरत घर इक बना।

फ़क्त इधर उधर इक्का दुक्का घर या मकान बनाने से क्या हासिल,
बस्तियां बसा और उन्हें एक तरतीब देकर खूबसूरत शहर इक बना।

शहर में लोग बस जाएं तो एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी से अंजान क्यों,
मिलने जुलने की उनमें आदत डाल, आपसी मेल जोल भी इक बना।

जब इक्कठे रहना है तो आपसी मिलने जुलने तक ही सीमित क्यों,
हमसायगी का उनमें जज़्बा डाल कर खूबसूरत सा माशरा इक बना।

नज़म - दूरियां-औ-नज़दीकियां

हमने तो कभी अपनों से शिकवा नहीं किया, कैसे गिला करते किसी बेगाने से,
हमने तो चाहा बेगानों को भी अपना लें पर अपना न बन पाया कोई ज़माने से।

साथ जब होते हैं तो हक-औ-हकतल्फ़ी के जुमले जुदाई की तरफ़ ले जाते हैं,
जुदाई प्यार में ज़हर लगती है, नज़दीकियां मानी-ए-खेज होती हैं दूर जाने से।

लम्हे जुदाई के बरदाश्त की हद्दों के पार हो जाएं तो जीना कठिन हो जाता है,
एक हसरत जाग उठती है उनसे मिलने की, प्यार बढ़ता है उनके पास आने से।

बहुत चाहा, बहुत सोचा किए कि बुला लें हम उनको और मिटा डालें ये दूरियां,
यकीं था हमें अपनी सोच पर और अपनी चाहत पर कि मान जाएंगे मनाने से।

दूरियां जब सिमटकर नज़दीकियां बन जाएं हैं तो कंवल दिल के खिल उठते हैं,
ज़िंदगी जीना सहज हो जाए है सभी का आपस में मिल बैठकर हंसने हंसाने से।

नज़म - तुम ज़िंदा हो

सांस ले रहे हो और इस सांस लेने को तुम समझते हो कि तुम ज़िंदा हो,
सांस लेना तो रिवायत है एक और तुम यह समझते हो कि तुम ज़िंदा हो,
ज़िंदा होने की तस्दीक के लिए सांस लेना ही इक सबूत काफ़ी नहीं है -
बहुत खलकत ज़िंदा है दुनियां में, क्या हो गया अगर तुम भी ज़िंदा हो।

आज के हुकुमरां पल पल तुम्हें यकीं दिलाते हैं कि तुम ज़िंदा हो,
और फिर यही हुकुमरां मुंह फेर कर मुस्कुराते हैं कि तुम ज़िंदा हो,
ये लोग एक एक कदम पे तुमसे ज़िंदा होने का मुआवज़ा मांगते हैं -
उठो और मुंहतोड़ जवाब दो और इनको दिखा दो कि तुम ज़िंदा हो।

हर कदम पर जद्द-औ-जहद कर सकते हो तो बोलो कि तुम ज़िंदा हो,
एक एक लम्हा मर के मुस्कुरा सकते हो तो बोलो कि तुम ज़िंदा हो,
ज़िंदा होना एक बात है, ज़िंदगी की हकीकतों से टकरा लेना और बात -
उठो और मोड़ दो रुख हवाओं के और फिर बोलो कि तुम ज़िंदा हो।

अना से रिश्ता पाले बैठे हो तुम और समझ रहे हो कि तुम ज़िंदा हो,
अना जब छीन लेगी होश-औ-हवास तो कैसे कहोगे कि तुम ज़िंदा हो,
अना की आड़ में छुपा ना पाओगे एहसास-ए-कमतरी को तुम कभी -
जब अना बरबाद कर देगी तुमको, तब कैसे कहोगे कि तुम ज़िंदा हो।

[रिवायत = Ritual] [तस्दीक = Certification] [खलकत = Population]
[हुकुमरां = Rulers] [मुआवज़ा = Price] [जद्द-औ-जहद = Struggle]
[अना = Ego] [एहसास-ए-कमतरी = Inferiority complex]