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Tuesday, November 9, 2010

कविता - नसीब अपना अपना

शोख़-औ-रंगीन पहरन उनको मुबारक, चाक-ए-गरेबां अपना नसीबा,
जहां की रौनकें उनको मुबारक, तीरगी-ए-शब-ए-हिज्रां अपना नसीबा।

गुंचा-ए-गुलों की उनको भरमार, अपने हिस्से में आएं कांटे बेशुमार,
बहारें गुलशनां उनको मुबारक, सूखे पात-ए-खिज़ां अपना नसीबा।

चलें वोह तो सारा जहां चले, जो हम चलें तो साया भी ना साथ हो,
महफ़िल-ए-कहकहां उनको मुबारक, अश्क-ए-फ़रोज़ां अपना नसीबा।

सब करम साकी के उनके नाम, अपने हिस्से में आएं खाली जाम,
बज़्म-ए-चरागां उनको मुबारक, शाम-ए-ज़ुल्मत कदां अपना नसीबा।

खुशियां दोनों जहां की उनको मयस्सर, ग़म-ए-दौरां अपना मुकद्दर,
रंगीनियां ज़माने की उनको मुबारक, अंधेरे तमाम अपना नसीबा।