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Tuesday, May 22, 2012

नज़म - मक्‍तूल का ज़ब्त

मुझे कत्ल करने को आए हैं वोह पर इतना बनसंवर कर किस लिए,
हम तो वैसे ही मर जाते, जनाब, ये आराइश-औ-सजसंवर किस लिए,
आप तो मुस्कुरा कर कत्ल कीजिए और फिर कत्ल करके मुस्कुराइए -
कत्ल करने के मकसद से आए हैं तो अफ़सुर्दगी चेहरे पर किस लिए।

अब खंजर घोंप ही दिया है, मेरी जान ना निकलने का डर किस लिए,
आप इतने परेशान क्यों हैं, यह बदहवासी आपके चेहरे पर किस लिए,
आपने तो भरपूर वार किया है, मुतमइन रहिए, जान तो निकलेगी ही -
यह दूसरे वार की तैयारी क्यों, ये घबराहट आपके चेहरे पर किस लिए।

एक राज़ की बात कह दूं, मेरी जान नहीं निकल रही है मग़र किस लिए,
अभी भी आप मेरे रूबरू हैं, मेरी जान बस अटकी हुई है मग़र इस लिए,
बहुत ज़ब्त है मुझमें, इत्मीनान से जाओ, आप पलटे और जान निकली -
जब तलक आपके दीदार मय्यसर हैं, जान निकलने दूं मग़र किस लिए।

[मक्‍तूल = One who is killed] [ज़ब्त = Patience] [आराइश = Makeup]
[मकसद = Purpose] [अफ़सुर्दगी = Sadness] [खंजर = Dagger]
[बदहवासी = Restlessness] [मुतमइन = Satisfied] [रू-ब-रूü = In front]
[इत्मीनान = Assured] [दीदार = Full view] [मय्यसर = Available]

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