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Thursday, March 8, 2012

नज़म - मुखौटे

वक्त-ए-हाल में तो हर शख्स अपने चेहरे पे एक मुखौटा पहन के आता है,
अख़लाक-औ-खुलूस से पारसा अल्फ़ाज़ में भी इक स्याहपन झलक जाता है,
इंसानी चेहरा तो महज़ ’टैबुला रासा' होता है, मुखौटा तो इसे शक्ल देता है -
इक मुखौटे में सोज़-ए-दिल अयां होता है तो इक रंग-औ-नूर लेके आता है।

मैं भी कई मुखौटे रखता हूं एवं हर मुखौटा वक्‍त-ए-ज़रूरत काम आता है,
मौके के मुताबिक मुख्तलिफ़ किस्म का इक मुखौटा सदा हाज़िर हो जाता है,
आप फ़रमाइश करके तो देखिए, ज़रूरत के मुताबिक मुखौटा पेश हो जाएगा -
एक बार मुखौटों को जो इस्तेमाल कर लेता है वोह इनका भक्‍त हो जाता है।

इक मुखौटा है ज़बरन सी मुस्कान लिए जो हर एक के दिल को मोह जाता है,
इक मुखौटा है ग़ुरूर से भरपूर जिसको देख कर दिल सभी का दहल जाता है,
हस्बा-ए-मामूल वक्‍ते ज़रूरत मुखौटे बदलना तो एक रिवायत सी होने लगी है -
लीजिए शरारत से भरपूर इक मुखौटा, सबका मन इसी मुखौटे में खो जाता है।

इक मुखौटा है मुर्दनी चेहरे वाला जो अक्सर मातमी मौकों पर ही काम आता है,
इक मुखौटा पुरनूर चेहरा लिए हुए है जो वक्‍त-ए-जश्‍नां ही इस्तेमाल आता है,
हर मुखौटे की अलग अहमियत होती है जो ज़रूरत के अनुसार काम आती है -
पेश है इक मुखौटा रंजो ग़म से चूर, यह दुखी दिल की पहचान सा हो जाता है।

क़त्ल करने के लिए कातिल भी तो इक कातिलाना सा मुखौटा लगाकर के आता है,
और फिर बाद में वोह मासूमियत से भरा इक नया सा मुखौटा लगाकर के आता है,
और भरपूर मासूमियत से वोह एक ही बात कहता है,"इलज़ाम यह मुझ पर क्यों?"
गवाह भले ही मुकर जाएं मग़र आस्तीन के ऊपर का लहु उसकी पोल खोल जाता है|

इक मुखौटा है खुराफ़ाती दिमाग़ वाला, यह 'भाई' लोगों की मिल्कियत हो जाता है,
इक मुखौटा है शराफ़त नकली लिए हुए जो नेता लोगों की धरोहर ही हो जाता है,
वाह साहब वाह, यह हुई ना बात, मुखौटे तो बहुत काम की चीज़ साबित होते हैं -
और देखिए मासूमियत से भरा यह मुखौटा भी, इससे हर दिल पसीज जाता है।

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