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Saturday, October 8, 2011

नज़म - मुकद्दमा-ए-कत्ल

कत्ल तुमने हमारा किया, तुम कातिल और मक्‍तूल हम हो गए,
दुन्यावी अदालत में तो गवाहों के बयानात पर बरी तुम हो गए,
मग़र दावा-ए-कत्ल नालिश हुआ तुम पे जब खुदा की अदालत में -
यूं तो हम साफ़ मुकर गए पर ग़लत बयानी के मुजरिम हम हो गए। 

दायर हुआ हमपर मुकद्दमा झूठ बोलने का तो मुजरिम हम हो गए,
खुदा की शतरंजी चाल तो देखो, गवाह की हैसियत से पेश तुम हो गए,
सैय्याद अपने जाल में खुद आ गया, सच बोलो तो गुनाह-ए-कत्ल साबित -
और झूठ बोल के बच निकलो तो झूठ बोलने के भी गुनहगार तुम हो गए।

कर लो हासिल इबरत इसी वाक्या से तो हर मंज़िल से पार तुम हो गए,
ऊपर क्या देखते हो, यहीं पर बहिश्त को पाने के हकदार भी तुम हो गए,
खुदा मिल जाएगा यहीं पर, राह-ए-बहिश्त को ढूंढने को क्यों निकले हो तुम -
प्रेम से जियो और औरों को भी जीने दो, हर मुश्किल से आज़ाद तुम हो गए।

1 comment:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

आज पहली बार आपके ब्लाग पर आने का मौका मिला।

बहुत सुंदर, क्या कहने।


समय मिले तो मेरे ब्लाग को देखिएगा।

http://aadhasachonline.blogspot.com