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Wednesday, October 5, 2011

कविता - कस्टमर इज़ आल्वेज़ राइट (या रौंग)

काफ़ी समय पहले एक साहब हमारे साथ बैंक में काम करते थे,
नाम तो था शांतिप्रिय पर छवि "एंगरी यंग मैन" वाली रखते थे,
जवान थे और हर ग्राहक से बिना किसी बात झगड़ा कर बैठते थे -
"कस्टमर इज़ आल्वेज़ राइट" बैंक मैनेजर अमूमन उन्हें समझाते थे।

"कस्टमर इज़ आल्वेज़ राइट" सुन सुनकर बेचारे घुटकर रह जाते थे,
एक दिन अचानक उन्होंने त्यागपत्र दे दिया पर बहुत खुश दिख रहे थे,
शायद कोई बेहतर और अच्छे वेतन वाली नौकरी उनको मिल गई थी -
जाते जाते वोह अपने नाम के अनुरूप सबसे खुश होकर मिल रहे थे।

कल एयरपोर्ट पर अचानक वो मिल गए, हमें बहुत तपाक से मिले थे,
हमने उनका हालचाल पूछा और पूछा आजकल वो कहां काम करते थे,
हंसकर बोले आजकल वो वहां हैं जहां "कस्टमर हमेशा रौंग ही होता है" –
मुझे हैरान देखकर बोले, "आजकल वो पोलीस विभाग में काम करते थे"।

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