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Wednesday, October 5, 2011

गज़ल - गज़ल

तूफ़ान से रहम की गुज़ारिश करते हो तुम,
बहुत नादान हो तुम, यह क्या करते हो तुम,
जीने के लिए तूफ़ां का मुकाबिला करो ना -
क्यों अपने मरने का सामान करते हो तुम।

यूं तो मोहब्बत के नाम पर आहें भरते हो तुम,
इज़हार-ए-मोहब्बत से फिर क्यों डरते हो तुम,
और इज़हार-ए-हाल-ए-दिल में यह देरी क्यों -
आज ही करो ना, कल पर क्यों रखते हो तुम।

उम्र-ए-हयात कुछ ऐसे बसर करते हो तुम,
जैसे हर्फ़-ए-ज़ीस्त पर सही करते हो तुम,
यह जानते हुए कि पल की खबर नहीं है -
सामान सौ बरस का मुहैय्या करते हो तुम।

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