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Tuesday, March 8, 2011

नज़म - इल्म और उसूल

आया जो मैं तेरे शहर में तो मैं परेशां हो गया,
मंज़र यहां का देख कर मैं तो पशेमां हो गया।

आलिम तलाश में है इल्म के असली हकदार की,
किसे दे इल्म, आलिम यह सोचकर हैरां हो गया।

इल्म का वारिस नहीं तो तख़्लीक-ए-उसूल क्या,
शहर का हर एक बे-उसूल शख़्स हुकुमरां हो गया।

इल्म-औ-उसूल नहीं, तो ज़मीर का वजूद क्या,
ज़मीर शहर में इल्म-औ-उसूल पर कुर्बां हो गया।

पारसाई कहां खो गई, सब पारसा कहां ग़ुम हो गए,
पारसाई का हरेक दावेदार तेरे शहर में बेईमां हो गया।

मेरे मौला, सब मुंतज़िर हैं यहां तेरे रहम-औ-करम के,
तेरा हर फ़रज़ंद इस शहर में बेनाम-औ-बेनिशां हो गया।

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