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Saturday, March 5, 2011

नज़म - दावा-ए-हकीकी

अपने दिल के किसी कोने में हमें एक बार जगह दे करके तो देखो,
कैसे छा जाते हैं हम आप की ज़िंदगी में, एक बार ये करके तो देखो।

फिर देखिए, आपकी आंखों में कैसे तस्सवुर की मानिंद बस जाएंगे हम,
यह तो दावा-ए-हकीकी है हमारा, एक बार आंखें मिला करके तो देखो।

किसी भी बात को नज़र के एक इशारे में समझने का हुनर रखते हैं हम,
और बात को पोशीदा रखने की तौफ़ीक, एक बार यकीन करके तो देखो।

यह आपको कोई ख्वाब नहीं दिखा रहे हैं हम, हकीकत आशना हैं हम,
वादे हम करते हैं तो सीना ठोक कर, एक बार वादा ले करके तो देखो।

कच्ची दीवार के जैसे नहीं कि एक ही ठोकर लगने से गिर जाएंगे हम,
बुनियाद की तरह पैठ जाते हैं, एक बार हमको आजमा करके तो देखो।

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