सच क्या है, सच एक हकीकत है, सच सदा हमें सही राह दिखाता है, झूठ क्या है, झूठ एक छलावा है, झूठ सदा ग़लत राह पर लगाता है। झूठ का ऐतबार ही क्या है, झूठ तो फ़रेब है शुरुआत से आख़िर तक, झूठ ऐय्यार है, सौ भेस बदल लेता है, झूठ हमेशा मन को लुभाता है। झूठ का मन भावन रूप आदमी को इस कदर बहका देता है कि वोह, झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने में नहीं हिचकिचाता है। सच माना कि कड़वा होता है और आसानी से हज़म नहीं होता है पर, सच का हमेशा बोलबाला होता है और वोह अपनी छाप छोड़ जाता है। सच हर हाल में फ़तेहयाब है, सच तो सच है आग़ाज़ से अंजाम तक, सच में तो सूरज का नूर समाया हुआ है, सच हमें रौशनी दिखाता है। झूठ की औकात ही क्या है, वक्ती तौर पर भले ही झूठ जीत जाए पर, सच और झूठ की लड़ाई में सच के मुकाबिल झूठ टिक नहीं पाता है।
Tuesday, May 22, 2012
नज़म - सच और झूठ
Labels: नज़म at 11:01:00 AM Posted by H.K.L. Sachdeva
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