अफ़साने उल्फ़त हमारी के यूं चर्चा में कैसे आ गए, यह आप बेहतर जानते हैं, हमारे दिल की लगी के बाबत कैसे जान गए लोग, यह आप बेहतर जानते हैं, दिल की अदल बदल के वक्त हम दोनों ने अहद लिया था एक पोशीदगी का - पोशीदगी-ए-उल्फ़त के इस अहद को किसने तोड़ा, यह आप बेहतर जानते हैं। ज़माने की नज़रें तीर की मानिंद हमको छेदती रही, यह आप बेहतर जानते हैं, हमने सदा अपनी ज़ुबान को सात तालों में बंद रखा, यह आप बेहतर जानते हैं, हमें हमेशा यही चिंता सताती रही कि कहीं आपका नाम जग ज़ाहिर न हो जाए - पोशीदगी-ए-उल्फ़त की इस गिरह को किसने खोला, यह आप बेहतर जानते हैं। पोशीदा बातों को आपने जग ज़ाहिर क्यों होने दिया, यह आप बेहतर जानते हैं, क्यों मोहब्बत को ऐसे बदनामी का चोगा पहना दिया, यह आप बेहतर जानते हैं, आपने शायद यही सोचा होगा कि अक्सर बदनामी में भी रास्ते निकल आते हैं - और इस मसले का भी कोई कारामद हल निकल आए, यह आप बेहतर जानते हैं।
Tuesday, May 22, 2012
नज़म - पोशीदगी-ए-उल्फ़त
Labels: नजम at 10:21:00 AM Posted by H.K.L. Sachdeva
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