सांस ले रहे हो और इस सांस लेने को तुम समझते हो कि तुम ज़िंदा हो, सांस लेना तो रिवायत है एक और तुम यह समझते हो कि तुम ज़िंदा हो, ज़िंदा होने की तस्दीक के लिए सांस लेना ही इक सबूत काफ़ी नहीं है - बहुत खलकत ज़िंदा है दुनियां में, क्या हो गया अगर तुम भी ज़िंदा हो। आज के हुकुमरां पल पल तुम्हें यकीं दिलाते हैं कि तुम ज़िंदा हो, और फिर यही हुकुमरां मुंह फेर कर मुस्कुराते हैं कि तुम ज़िंदा हो, ये लोग एक एक कदम पे तुमसे ज़िंदा होने का मुआवज़ा मांगते हैं - उठो और मुंहतोड़ जवाब दो और इनको दिखा दो कि तुम ज़िंदा हो। हर कदम पर जद्द-औ-जहद कर सकते हो तो बोलो कि तुम ज़िंदा हो, एक एक लम्हा मर के मुस्कुरा सकते हो तो बोलो कि तुम ज़िंदा हो, ज़िंदा होना एक बात है, ज़िंदगी की हकीकतों से टकरा लेना और बात - उठो और मोड़ दो रुख हवाओं के और फिर बोलो कि तुम ज़िंदा हो। अना से रिश्ता पाले बैठे हो तुम और समझ रहे हो कि तुम ज़िंदा हो, अना जब छीन लेगी होश-औ-हवास तो कैसे कहोगे कि तुम ज़िंदा हो, अना की आड़ में छुपा ना पाओगे एहसास-ए-कमतरी को तुम कभी - जब अना बरबाद कर देगी तुमको, तब कैसे कहोगे कि तुम ज़िंदा हो। [रिवायत = Ritual] [तस्दीक = Certification] [खलकत = Population] [हुकुमरां = Rulers] [मुआवज़ा = Price] [जद्द-औ-जहद = Struggle] [अना = Ego] [एहसास-ए-कमतरी = Inferiority complex]
Wednesday, May 25, 2011
नज़म - तुम ज़िंदा हो
Labels: नज़म at 10:18:00 AM Posted by H.K.L. Sachdeva
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