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Wednesday, May 25, 2011

नज़म - माशरा

शेर तो बहुत कहते हो, जोड़कर उनको खूबसूरत नज़म इक बना,
छोटे छोटे तिनकों को चुन और उनसे खूबसूरत घोंसला इक बना।

बहुत आसान होता है ईंट-औ-पत्थर को जोड़ मकान एक बना देना,
मकान को रहने लायक बना के आबाद कर खूबसूरत घर इक बना।

फ़क्त इधर उधर इक्का दुक्का घर या मकान बनाने से क्या हासिल,
बस्तियां बसा और उन्हें एक तरतीब देकर खूबसूरत शहर इक बना।

शहर में लोग बस जाएं तो एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी से अंजान क्यों,
मिलने जुलने की उनमें आदत डाल, आपसी मेल जोल भी इक बना।

जब इक्कठे रहना है तो आपसी मिलने जुलने तक ही सीमित क्यों,
हमसायगी का उनमें जज़्बा डाल कर खूबसूरत सा माशरा इक बना।

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