ज़िंदगी में सच्चाई की राह पर चलके ही मंज़िलों को हमने पाया है, ज़िंदगी में टेहड़े मेहड़े रास्तों पर भी आसान सफ़र हमने सुझाया है। इस शिद्दत से तुमको चाहा है, अपने सिर आंखों पर हमने बिठाया है, अपना खुदा तुमको माना है, प्रस्तिश के लिए शीश हमने झुकाया है। पत्थर के मानिंद सख्त सही लेकिन हममें दरिया जैसी रवानी भी है, हमारे साथ चलकर तो देखो, चट्टानों में भी रास्ता हमने बनाया है। तन्हाइयां नाखुश रही हैं हमेशा और कोसों दूर हमसे भागती रही हैं, इस कदर खुश मिजाज़ हैं हम, जंगल में भी मंगल हमने सजाया है। ज़मीं-औ-आसमां, चांद-औ-तारे, सब का बस हमसे एक ही पैग़ाम है, कायम रहे इश्क मोहब्बत, इश्क मोहब्बत को खुदा हमने मनाया है।
Wednesday, May 25, 2011
नज़म - इश्क-औ-मोहब्बत
Labels: नज़म at 10:42:00 AM Posted by H.K.L. Sachdeva
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