हमारी ज़िंदगी के हासिल में जब कभी भी आते हो आप, हमारे लिए बहारों और जन्नत के पैग़ाम ही लाते हो आप। आपकी चूड़ियों की खनक से तो बाखुदा हम खूब वाकिफ़ हैं, चूड़ियों अपनी को छनका के हमें सराबोर कर जाते हो आप। आपके प्रेम भरे गीतों की रसीली तान तो हमें मधुर लगती है, अपने प्यारे गीतों से हमारे कानों में रस घोल जाते हो आप। तपती दोपहर में सूर्य की गर्म धूप से जब हम छटपटा उठते हैं, तो अपनी परेशां ज़ुल्फ़ों की नर्म छांव हमपर डाल जाते हो आप। आप ही बताओ आपकी आंखों से छलके नशे से कैसे बचें हम, अपनी नशीली आंखों से नशा तो बारहा छलकाए जाते हो आप।
Wednesday, May 25, 2011
नज़म - आप-औ-हम
Labels: नज़म at 10:31:00 AM Posted by H.K.L. Sachdeva
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