ज़िंदगी में जब भी तारीकियां आती हैं आपके रुख-ए-रौशन से हमें सुकून मिलता है, ज़िंदगी में जब भी तन्हाई खाती है आपकी रूह-ए-रौनक से हमें सुकून मिलता है। आपकी शोखियां-औ-तब्बसुम तो हमेशा ही अहम रहे हैं हमारे दिल को बहलाने में, आ जाओ, तबीयत अफ़सुर्दा है, आपकी सुर्ख़ी-ए-रुखसार से हमें सुकून मिलता है। आपकी तुनकमिजाज़ियों पर तो हम हमेशा से ही जी जान से निसार होते आए हैं, आ जाओ, दिल हमारा मुज़तरिब है, आपकी अठखेलियों से हमें सुकून मिलता है। आपकी बेबाकी-ए-निगाह-ए-मस्त तो हमेशा से ही हमारी तस्कीन का बाइस रही हैं, आ जाओ, तबीयत बेगाना-ए-अलम है, आपकी बेबाकियों से हमें सुकून मिलता है। आपको तो महारथ हासिल है अपने बदन की महक से हमारे चमन को महकाने की, आ जाओ, हालात-ए-हाज़िरा नाखुशगवार हैं, आपकी खुशबू से हमें सुकून मिलता है।
Monday, April 11, 2011
नज़म - सुकून
Labels: नज़म at 3:18:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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