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Monday, January 10, 2011

नज़म - काला हाशिया

किसी भाई लोगों का वोह भाई है या फिर किसी नेता का जमाई है,
पर फ़र्क क्या पड़ता है इस से, दहशतगर्दों की कोई जात नहीं होती।

बस्तियां जलाना इनका पेशा, भाई को भाई से लड़ाना फ़ितरत इनकी,
दहशतगर्दी इनके मज़हब, अलावा इसके इनकी कोई औकात नहीं होती।

खूंरेज़ी जारी तो है इनकी लेकिन कब तक, कोई तो इंतेहा मुकरर होगी,
तश्शदुद-औ-शोलानवाई शोबा इनका, जिसके दिन और रात नहीं होती।

पर जब नेस्तनाबूद हो जाएंगे तो दो गज़ ज़मीन भी इनको नसीब ना होगी,
गुनाह जो हद्द से गुज़र जाते हैं तो इनके नताइज से निजात नहीं होती।

भुला दोगे जो दिलों से मोहब्बत के निसाब तो पाओगे क्या रोज़-ए-जज़ा,
प्यार, मोहब्बत, इमान और वफ़ा से बढ़ कर कोई और सौगात नहीं होती।

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