मेरा माज़ी तो खज़ाना है एक, मैं इसको बहुत संभाल करके रखता हूं, हाल में जब जी परेशान होता है तो इसी से दिल लगा के रखता हूं। मेरे इस खज़ाने में पैबस्त हैं मेरी अनगिनत भूली बिसरी हसीन यादें, इन हसीन यादों की पूंजी को मैं सात तालों में बंद कर के रखता हूं। माना कि मेरे माज़ी की इन यादों में शुमार ज़माने की तल्खियां भी हैं, पर मैं तो इन तल्ख यादों को भी हर घड़ी खुशगवार बना के रखता हूं। इन खट्टी मीठी यादों से ही तो ज़ाहिर होते हैं ज़िंदगी के दोहरे रुख, इसलिए मैं हसीन यादों की तिजोरी में तल्खियां भी जमा के रखता हूं।
Monday, October 18, 2010
नज़म - मेरा माज़ी
Labels: नज़म at 12:13:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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