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Wednesday, October 5, 2011

नज़म - खवाबों की बुनाई

आओ हम दोनों मिल कर आज कुछ कहते हैं और कुछ सुनते हैं,
कुछ हम सुनाएं, सुनो आप और कुछ हम आप की सुनते है,
इसी सुनने सुनाने में जो गुज़र जाए वही वक्‍त बेहतर होता है -
चलो बातों के धागों को आगे बढ़ाकर ख्वाब कुछ हम बुनते हैं।

कितने हसीन होते हैं ये ख्वाब जो हम दोनों मिलकर बुनते हैं,
पर आपको तो खबर ही नहीं कि लोग क्या क्या बातें करते हैं,
खैर, छोड़ो उनकी बातें, उनके पास तो और कोई काम ही नहीं होता -
भूलकर ज़िंदगी की भाग दौड़ को कुछ कदम संग संग चलते हैं।

तमाम उम्र यह जो हम जीते हैं, ख्वाब देखते हैं और बातें करते हैं,
एक दूजे से हम लड़ते हैं और झगड़ते हैं, प्यार मोहब्बत करते है,
सभी कारगुज़ारी में एक ही बात है जो काबिल-ए-ग़ौर है, ता-ज़िंदगी -
यही दौलत हम कमाते हैं एवं यही मिल्कियत हासिल करते हैं।

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