मेरठ की एक महिला का वहां आना हुआ जहां हम काम करते हैं, हमने मज़ाक मज़ाक में ही उनसे कह दिया कि लोगों से सुनते हैं, कि आपके मेरठ शहर की कैंचियां तो बहुत दूर दूर तक मशहूर हैं - दर्जी तो दर्जी, जेबकतरे तक भी वही कैंचियां ही इस्तेमाल करते हैं। वोह मुस्कुराकर बोली, "जी जनाब, हम भी तो यही बात सुनते हैं, और इसमें ग़लत भी क्या है जो वोह उन्हीं का इस्तेमाल करते हैं, आख़िर क्यों इस्तेमाल ना करें वोह अपने ही शहर की कैंचियों को - शहर की कैचिय़ां बेहतर हैं सो वोह उन्हीं का ही इस्तेमाल करते हैं। दर्जियों और जेबकतरों की बात को छोड़िए, लोग तो ऐसा भी कहते हैं, कि हम महिलाएं भी दिन रात इन कैंचियों का ही इस्तेमाल करते हैं, असल में हम महिलाएं तो इन कैचियों के चलते फिरते इश्तेहार ही हैं - हम तो अपनी ज़ुबान का इन कैचियों की तरह ही इस्तेमाल करते हैं"।
Wednesday, October 5, 2011
नज़म - कैंचियां
Labels: नज़म at 3:52:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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