जब मेरे नन्हे शौर्य के मुख पर प्यारी एक मुस्कान उभरती है, तो पत्ता पत्ता लहलहा उठता है, हवा भी गुनगुनाने लगती है, वातावरण सुरमय हो जाता है, मधुर स्वर गूंजने लगते हैं - खामोशी भी खिलखिला देती है एवं ठहाके लगाने लगती है। जब मेरे नन्हे शौर्य के मुख पर प्यारी एक मुस्कान उभरती है, कंवल दिल के खिल उठते हैं, हवा खुशगवार सी लगने लगती है, संपूर्ण सृष्टि महक उठती है एवं हर तरफ़ एक जादू फैल जाता है - खामोशी भी खिलखिला देती है और ठहाके लगाने लगती है। जब मेरे नन्हे शौर्य के मुख पर प्यारी एक मुस्कान उभरती है, बेखुदी हद्द से गुज़र जाती है, आसपास की खबर नहीं रहती है, श्वास श्वास में एक अनोखा सा, अनूठा सा अनुभव होता है - खामोशी भी खिलखिला देती है और ठहाके लगाने लगती है।
Tuesday, May 14, 2013
कविता - मुस्कान मेरे नन्हे शौर्य की (Shaurya is my Grandson)
Labels: कविता at 5:54:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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1 comment:
आदरणीय,आज ही आपके ब्लॉग पर आया आपकी ग़ज़ल तो बहुत ही उच्च कोटि की हैं.मैंने एक हिंदी काव्य संकलन बनया है ,एक बार अवलोकन करें और कुछ ग़ज़लें भेजें जो आपके पूर्ण परिचय के साथ प्रकाशित होगी.
"हिन्दी काव्य संकलन"
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