मैं अपने हाथ में तकदीर द्वारा लिखित लकीरों का जायज़ा लगाता हूं, आज तक मैंने ज़िंदगी में क्या खोया, क्या पाया, बही खाता बनाता हूं, लोग कहते हैं जो तकदीरों में नहीं लिखा होता वोह तदबीरें दिला देती हैं - तकदीर की बंदिशों में बंधा रह के मैं अपनी तदबीरों में खो जाता हूं। तकदीर की लकीरों में मैं अपने पूर्व जन्म का बकाया लेके आता हूं, और तदबीरों की मार्फ़त कर्मभूमि में अपने दांव पेच मैं आजमाता हूं, यूं भी कहा गया है कि सब कुछ उसी की रज़ा से ही तो मिलता है - भगवान की रज़ा एवं अपनी कर्म शक्ति के तालमेल को आजमाता हूं। यह खेल तकदीरों का है या कि तदबीरों का, यहां मैं उलझ जाता हूं, उसकी रज़ा के मुकाबिले अपनी कार्मिक क्षमता को ना-माकूल पाता हूं, फिर मुझे रौशनी का एक जज़ीरा "गीता ज्ञान" के रूप में नज़र आता है - और मैं अपने कर्म क्षेत्र में जुटकर नतीजे को उसकी रज़ा पर छोड़ देता हूं।
Tuesday, May 14, 2013
नजम - गीता ज्ञान - कर्म किए जाओ, फल मुझ पर छोड़ दो
Labels: नजम at 5:45:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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