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Wednesday, August 25, 2010

गज़ल - गज़ल

भले ही दिलेरी और बेबाकी के ज़राबख्तर को अपने साथ रखो,
सादगी-औ-हया की अमूल्य पोशाक को भी तो अपने साथ रखो।

मानाकि  खुशियों का इक खज़ीना आप अपने साथ रखते हो,
दूसरों में खुशियां बांटने के जज़्बे को भी तो अपने साथ रखो।

मोहब्बत में लोग दिल की इक नवेकली सोच से काम लेते हैं,
दिमाग़ी फ़ैसले और शाइस्ता सोच को भी तो अपने साथ रखो।

उल्फ़त में तो यकीनन आदमी की सोच इक तरफ़ा हो जाती है,
दो वक्त की रोटी के जुगाड़ की सोच को भी तो अपने साथ रखो।

मैं तो बहुत रईस हूं और हर जानिब चर्चे हैं मेरे रईसी ठाठ के,
दर पे आए हुए साइल की दी दुआ को भी तो अपने साथ रखो।

ज़िंदगी में रोबिनसन करूसो बनके जीना भी कोई मुश्किल नहीं,
लेकिन माशरे का इक फ़र्द होने का फ़र्ज़ भी तो अपने साथ रखो।

ज़िंदगी जीते जीते हर आदमी दुनियां में इशरत-ज़दा हो जाता है,
मौत का एहसास दिल में रखने का मादा भी तो अपने साथ रखो।

नसीबा बन बन भटकने का प्रभु श्री राम ने अपने गले लगाया था,
उनके ’मर्यादा पुरुषोत्तम’ होने के जज़्बे को भी तो अपने साथ रखो।

कर्म करके फल की इच्छा को रखना सब के लिए लाज़मी होता है,
श्रीकृष्ण के अर्जुन को ’गीता ज्ञान’ की याद भी तो अपने साथ रखो।

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