जनाब-ए-वाला, आपसे इश्क ही तो किया है, आप माथे पे त्योरी चढ़ाते क्यों हो, जनाब-ए-वाला, कोई गुनाह तो नहीं किया है, आप माथे पे त्योरी चढ़ाते क्यों हो। इश्क हो जाए किसी को किसी से, क्या यह कहीं किसी के बस में हुआ करता है, हमारे भी बस से बाहर था जो हमने किया है, आप माथे पे त्योरी चढ़ाते क्यों हो। कौन किसी के काबिल है और कौन किसी के काबिल नहीं है, खुदाई देन है इश्क, यह खुदाई देन हमें मिली है तो हमने किया है, आप माथे पे त्योरी चढ़ाते क्यों हो। इश्क रुतबा, मयार, मज़हब और ज़ातपात कभी नहीं पूछा करता, सिर्फ़ हो जाता है, हमें भी बस हो गया है इश्क तो हमने किया है, आप माथे पे त्योरी चढ़ाते क्यों हो। लगता है कि हमारी बातों से आप मुतमइन हो गए हो जो मंद मंद मुस्कुरा रहे हो, हमने आपको मुतमइन कर ही दिया है तो फिर आप माथे पे त्योरी चढ़ाते क्यों हो।
Saturday, December 15, 2012
नज़म - माथे पे त्योरी
Labels: नज़म at 2:58:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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