जुगनुओं की मानिन्द चमक भर जाती हैं मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारी आँखें, रोज़ रोज़ नए नए हसीन रंग भर जाती हैं मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारी आँखें, बस इसी पशोपेस में रहता हूँ कि तुम्हें देखूँ या देखता रहूं तुम्हारी आँखें, तुम्हारी पूरी शख्सियत के वजूद का आइना बन जाती हैं तुम्हारी आँखें| आँखें फेर लेती हो जब तुम तो सज़ा की मानिंद लगती हैं तुम्हारी आँखें, आँखें तिरछी करती हो तुम तो कहर की मानिंद लगती हैं तुम्हारी आँखें, आँखें झुकाकर उठा लेती हो तुम तो हमें खतावार बताती हैं तुम्हारी आँखें, आँखें उठाकर झुका देती हो तुम तो इक अदा बन जाती हैं तुम्हारी आँखें| आँखें झुका लेती हो जब तुम तो हया-औ-सादगी दर्शाती हैं तुम्हारी आँखें, आँखें मिलाती हो जब तुम तो जीने की वजह बन जाती हैं तुम्हारी आँखें, आँखों के झुकाने और उठाने में ही हज़ारों रंग दिखा जाती हैं तुम्हारी आँखें, आँखें उठा लेती हो जब तुम तो खुदा की रज़ा बन जाती हैं तुम्हारी आँखें|
Monday, November 14, 2011
नज़म - तुम्हारी आँखें
Labels: नज़म at 4:29:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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1 comment:
बहुत सुंदर
क्या कहने
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