बाद मुद्दत के आज उनसे मुलाकात जब हो गई, ज़ुबां थम सी गई और निगाह बस जम सी गई, देखा जो उन्हें मैंने तो फिर देखता ही रह गया - लब तो सिल से गए, धड़कनें कुछ रुक सी गई। यूं लगा कि मेरी वीरां ज़िंदगी में बहार सी आ गई, यूं लगा कि इन खामोश तारों में झंकार सी आ गई, छलकती आंखों से जो मैंने पी तो पीता ही रह गया - यूं लगा कि लबों पे ये तिशनगी बेशुमार ही आ गई। बेनूर मेरी ज़िंदगी पुरनूर हो गई रौशनी सी छा गई, माहौल सुरमय हो गया, हरसु इक खुमारी सी छा गई, मुकद्दर यूं बदलेगा, मंत्रमुग्ध हो मैं सोचता ही रह गया - मेरे घर में मुझे ऐसा लगा कि खुदा की खुदाई छा गई।
Monday, November 14, 2011
नज़म - बाद मुद्दत के
Labels: नज़म at 4:02:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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