कल यहां ऐसा एक कोहराम मचा कि हवाएं बिलखने लगी, मौत ने ऐसा किया कुछ तांडव कि ज़िंदगी सिसकने लगी, लाशों के टुकड़े उड़े और उड़कर यूं बिखरे इस फ़ज़ा में कि - माहौल रोया खून के आंसु और इंसानियत तड़पने लगी। मुल्क को क्या तुमसे यही तव्वको है कि वहशत नाचने लगे, मुल्क ने क्या तुमको यही दिया है कि हैवानियत हंसने लगे, जाहिलो, जिस थाली में तुम खाते हो, उसी में छेद करते हो - मुल्क का मुस्तकबिल क्या होगा जो जूतियों में दाल बंटने लगे। उठो ग़ैरतमंद इंसानो, जवाब दो कि हैवानियत तड़पने लगे, उठो नौजवानों, मुकाबिला करो डटकर कि वहशत सिसकने लगे, कह दो इन दरिंदों को कि खुद भी जिएं औरों को भी जीने दें - वगरना यूं मुंह की खाएंगे ये कि इनकी रूह भी कांपने लगे।
Saturday, June 11, 2011
नज़म - मुम्बई ब्लास्ट्स
Labels: नज़म at 5:47:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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