बेतक्कलुफ़ होकर आप हमारे घर पे आओ, मैं खुश आमदीद कहता हूं, तक्कलुफ़ को दरकिनार कर के आओ, यह बात मैं हर बार कहता हूं। सादगी तो आपकी कुदरत है खुदा की तो आराइश की क्या ज़रूरत है, आराइशों को दरकिनार कर के आओ, यह बात मैं हर बार कहता हूं। हया से बढ़कर अदा और क्या हो सकती है, कोई यह बताए मुझे, अदाओं को दरकिनार कर के आओ, यह बात मैं हर बार कहता हूं। कहावत मशहूर है नहीं मोहताज ज़ेवर का जिसे खूबी खुदा ने दी, सजावट को दरकिनार कर के आओ, यह मैं बात हर बार कहता हूं। वादा नहीं करो हमसे मुलाकात का, बस चले आओ हमसे मिलने, वादों को दरकिनार कर के आओ, यह बात मैं हर बार कहता हूं। दिल में बसे हुए हो आप हमारे जन्म जन्मांतर से, युग युगांतर से, युगों को दरकिनार कर के आओ, यह बात मैं हर बार कहता हूं।
Wednesday, September 8, 2010
नज़म - यह बात मैं हर बार कहता हूं
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नज़म
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3:39:00 PM
Posted by
H.K.L. Sachdeva
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