वोह जब भी हंसते हैं तो उनके मुख से फूल झरते हैं, फूल जो उन के मुख से झरते है हम उनको चुनते हैं, इसीलिए तो हमारे घर रोज़ाना नए गुलदस्ते सजते हैं, इस तरह घर में ही बहार-ए-चमन से हम मिलते हैं। वोह जब भी हंसते हैं तो उनके मुख से मोती चमकते हैं, मोतियों की इस चमक से हम झोली भर लिया करते हैं, इसीलिए तो हमारे घर रोज़ ही नए नए फ़ानूस सजते हैं, इस तरह घर में ही चांद-औ-सूरज की रौशनी भरते हैं। ज़िंदगी के चमन में उनकी हंसी के गुल सदैव महकते हैं, ज़िंदगी की चमक में हम उनकी हंसी की चमक भरते हैं, बनके जीवन संगिनी मेरे जीवन में वोह कुछ यूं सजते हैं, सफ़र-ए-हयात में अपने सब कदम साथ ही साथ उठते हैं।
Thursday, July 1, 2010
नज़म - जीवन संगिनी
Labels: नज़म at 5:37:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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