जब कभी भी दिल में आपके पास आने की आस उभर आई है, आपके हसीन लबों पर दबी दबी सी एक मुस्कान उभर आई है। जब कभी भी आए हो आप और आपको रू-ब-रू हमने पाया है, तो इक नज़म आपकी खातिर गुनगुनाने की सोच उभर आई है। वोह बात जो एक अरसे से यादों की कब्र में दफ़न हो चुकी थी, वही बात फिर आज ना जाने हमारे ज़हन में कैसे उभर आई है। आपकी जिस बात ने हमारी ज़िंदगी के रुख को ही पलटा दिया, याद करके उसको हमारे लबों पे भीनी सी मुस्कान उभर आई है। हमेशा हमें तवक्को रही है कि आप मुस्कुराकर मिला करो हमसे, पर हमें मिल कर आपके चेहरे पर यह उदासी क्यों उभर आई है। रुख से पर्दा उठाओ तो जाने बर्क-ए-तज्जली ने कुछ किया तूर पर, हमें भी ऐसा नज़ारा देखकर होश खो देने की आस उभर आई है। शब्दार्थ [बर्क-ए-तजल्ली = करामाती बिजली - जब हज़रत मूसा (मोज़ेज़) पहली मर्तबा अल्लाह से मिलने कोहितूर पर्वत पर गए तो अल्लाह के जलाल (करामाती बिजली) से कोहितूर पर्वत जल गया और हज़रत मूसा (मोज़ेज़) कुछ पलों के लिए बेहोश हो गए)
Saturday, June 26, 2010
नज़म - आप और हम
Labels: नज़म at 7:43:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva 0 comments
Wednesday, June 23, 2010
Tuesday, June 15, 2010
कविता - ग़रीबी रेखा
ग़रीबी रेखा से एक सीमा निर्धारित होती है ग़रीबों के निवास के लिए, इसके ऊपर का स्थान आरक्षित है केवल अमीरों के निवास के लिए, इस पर लगी एक तख़्ती के दोनों ओर "प्रवेश निशेध" लिखा होता है - ऊपर ग़रीबों के जाने पर रोक है और नीचे अमीरों के आने के लिए। सदियों से यह प्रथा चली आई है केवल ग़रीबों के अनुसरण के लिए, ग़रीब रेखा लांघ भी जाएं तो टिक नहीं पाते अपने संस्कारों के लिए, अमीर तो इसके ऊपर प्रसन्न हैं नित नए बदलते संस्कारों के चलते - निर्धारण रेखा का हो या संस्कारों का, सब बंदिशें हैं ग़रीबों के लिए। हां, कोई बंदिश नहीं अमीरों पर इसके ऊपर और ऊपर जाने के लिए, व कोई बंदिश नहीं ग़रीबों पर भी इसके नीचे और नीचे जाने के लिए, ग़रीबी-औ-अमीरी में फ़ासला मैंने बढ़ते हुए तो देखा है घटते हुए नहीं - दोनों ही परिस्थितियां दृढ़ हैं अपने स्थान पर सीमा पालन के लिए। वैसे तो ये बंदिशें सुदृढ़ हैं अपने अपने स्थान पर स्थाई तौर के लिए, किसी के लिए भी कोई गुंजाइश नहीं है इधर से उधर जाने के लिए, पर यदि कोई भाग्य से सीमा रेखा के इधर या उधर निकल जाता है - तो ग़रीब हो या अमीर वहीं का होकर वोह रह जाता है सदा के लिए।
Labels: कविता at 8:56:00 AM Posted by H.K.L. Sachdeva 0 comments
Wednesday, June 9, 2010
Tuesday, June 1, 2010
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