सो रहा है क्यों यह तुम्हारा ज़मीर, उसको जगाओ, अरे भाई, पानी के छींटे मारो उस पे, उसको उठाओ। यह सो गया तो सो जाएगी हर वोह शय जो हक है, सोने ना दो उसे, चिमटी काटो, होश में उसको लाओ। सोया रहा सदियों से चाहे पर अब ना सोने दो उसे, एक बार फिर से शहीदों के अफ़साने उसको सुनाओ। फ़िरंगियों से आज़ाद हो गए तो क्या गनीमत हो गई, अपने मुल्क में ही ग़ुलाम हैं, यह याद उसको दिलाओ।
Tuesday, March 8, 2011
नज़म - ज़मीर
Labels: नज़म at 12:41:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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