हर जगह पर आशियाने उसी का है, इक इक ज़र्रे में ठिकाना उसी का है। हर शाम को रंगीन जिसने कर दिया, सुबह दम मंज़र सुहाना उसी का है। हर खास-औ-आम का राज़दां वोह है, हर किसी के साथ दोस्ताना उसी का है। तयशुदा है कि साहिब-ए-कायनात है वोह, यह मंज़र, यह नज़ारा, सब उसी का है। सभी का तो है वोह गौड, खुदा, रब्ब, भगवान, जायज़ नहीं किसी का भी दावा कि वोह उसका है।
Saturday, March 19, 2011
नज़म - गौड, खुदा, रब्ब, भगवान
Labels: नज़म at 3:22:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment