हर जगह पर आशियाने उसी का है, इक इक ज़र्रे में ठिकाना उसी का है। हर शाम को रंगीन जिसने कर दिया, सुबह दम मंज़र सुहाना उसी का है। हर खास-औ-आम का राज़दां वोह है, हर किसी के साथ दोस्ताना उसी का है। तयशुदा है कि साहिब-ए-कायनात है वोह, यह मंज़र, यह नज़ारा, सब उसी का है। सभी का तो है वोह गौड, खुदा, रब्ब, भगवान, जायज़ नहीं किसी का भी दावा कि वोह उसका है।
Saturday, March 19, 2011
नज़म - गौड, खुदा, रब्ब, भगवान
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Tuesday, March 8, 2011
नज़म - इल्म और उसूल
आया जो मैं तेरे शहर में तो मैं परेशां हो गया, मंज़र यहां का देख कर मैं तो पशेमां हो गया। आलिम तलाश में है इल्म के असली हकदार की, किसे दे इल्म, आलिम यह सोचकर हैरां हो गया। इल्म का वारिस नहीं तो तख़्लीक-ए-उसूल क्या, शहर का हर एक बे-उसूल शख़्स हुकुमरां हो गया। इल्म-औ-उसूल नहीं, तो ज़मीर का वजूद क्या, ज़मीर शहर में इल्म-औ-उसूल पर कुर्बां हो गया। पारसाई कहां खो गई, सब पारसा कहां ग़ुम हो गए, पारसाई का हरेक दावेदार तेरे शहर में बेईमां हो गया। मेरे मौला, सब मुंतज़िर हैं यहां तेरे रहम-औ-करम के, तेरा हर फ़रज़ंद इस शहर में बेनाम-औ-बेनिशां हो गया।
Labels: नज़म at 12:42:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva 0 comments
नज़म - ज़मीर
सो रहा है क्यों यह तुम्हारा ज़मीर, उसको जगाओ, अरे भाई, पानी के छींटे मारो उस पे, उसको उठाओ। यह सो गया तो सो जाएगी हर वोह शय जो हक है, सोने ना दो उसे, चिमटी काटो, होश में उसको लाओ। सोया रहा सदियों से चाहे पर अब ना सोने दो उसे, एक बार फिर से शहीदों के अफ़साने उसको सुनाओ। फ़िरंगियों से आज़ाद हो गए तो क्या गनीमत हो गई, अपने मुल्क में ही ग़ुलाम हैं, यह याद उसको दिलाओ।
Labels: नज़म at 12:41:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva 0 comments
Saturday, March 5, 2011
नज़म - दावा-ए-हकीकी
अपने दिल के किसी कोने में हमें एक बार जगह दे करके तो देखो, कैसे छा जाते हैं हम आप की ज़िंदगी में, एक बार ये करके तो देखो। फिर देखिए, आपकी आंखों में कैसे तस्सवुर की मानिंद बस जाएंगे हम, यह तो दावा-ए-हकीकी है हमारा, एक बार आंखें मिला करके तो देखो। किसी भी बात को नज़र के एक इशारे में समझने का हुनर रखते हैं हम, और बात को पोशीदा रखने की तौफ़ीक, एक बार यकीन करके तो देखो। यह आपको कोई ख्वाब नहीं दिखा रहे हैं हम, हकीकत आशना हैं हम, वादे हम करते हैं तो सीना ठोक कर, एक बार वादा ले करके तो देखो। कच्ची दीवार के जैसे नहीं कि एक ही ठोकर लगने से गिर जाएंगे हम, बुनियाद की तरह पैठ जाते हैं, एक बार हमको आजमा करके तो देखो।
Labels: नज़म at 4:39:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva 0 comments
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