देश की राजधानी में बाँब ब्लास्ट, इतने मरे, इतने घायल, ऐसा तो होता ही रहेगा, किसी डिज़ास्टर पंडित ने कहा था। "मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला", क्या यह वही देश है जिसके लिए भगत ने कहा था। "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, दिल में है", क्या यह वही देश है जिसके लिए भगत ने कहा था। "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती", क्या यह वही देश है जिसके लिए भारत ने कहा था। "है प्रीत जहां की रीत सदा मैं गीत वहां के गाता हूं", क्या यह वही देश है जिसके लिए भारत ने कहा था। हां, यह वही देश है, तोड़ दो इन दरिंदों के काले चश्मे को, फिर खुद कहोगे जो भगत ने कहा था और भारत ने कहा था।
Tuesday, February 8, 2011
कविता - काला चश्मा
Labels: कविता at 12:01:00 PM Posted by H.K.L. Sachdeva
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